ऐतिहासिक फैसला: मुस्लिम महिलाओं को भी मिला तीन तलाक़ का हक़। देवबंद उलेमाओं ने किया विरोध शुरू
बरेली । आला हजरत दरगाह की चली तो अब तीन तलाक पर सिर्फ पुरुषों का अधिकार ही नहीं बल्कि महिलाएं भी इसका प्रयोग कर पाएंगी। पहली बार देश में किसी दरगाह ने तीन तलाक के सुलगते मसले पर नई परिभाषा दी है।
अभी तक शरीयत तलाक का हक सिर्फ मर्द यानी पुरुष को देती है। जब कभी किसी महिला की तरफ से यह मांग उठी तो उलमा यही राय जाहिर करते रहे थे कि तलाक पुरुष ही दे सकता है महिला नहीं।
लेकिन आला हजरत दरगाह का मानना है कि मुस्लिम महिला को भी यह इख्तेयार (अधिकार) है, जिसे शरीयत में तसवीज-ए-तलाक का नाम दिया गया है। दरगाह आला हजरत से इस मसले पर फतवा जारी हुआ है।
तसवीज-ए-तलाक का अधिकार मुस्लिम औरतों को तभी मिलता है जब निकाह के वक्त शौहर बीवी से यह कह दे कि मैं तुझे यह इख्तेयार देता हूं कि तू अपने आपको तलाक दे दे। इस मजमून को किसी आलिम से लिखवाया भी जा सकता है। ऐसी सूरत में बीवी ऐसे शौहर को जो उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता, तो बीवी अपने आपको तलाक दे सकती है।
दरगाह आला हजरत के प्रवक्ता मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी ने कहा है कि तसवीज-ए-तलाक का जिक्र बहारे शरीयत में पेज 25 से 41 तक है। दुर्रे मुख्तार जो कि फिकाह-ए-हनफी की किताब है, उसकी चौथी जिल्द में पेज 565 से 587 तक यह मसला बयान किया गया है।
साफ हो जाता है कि महिला भी तलाक दे सकती है। उसे तलाक हो जाएगी। यही बात दारुल इफ्ता मंजरे इस्लाम में फतवा विभाग के अध्यक्ष मुफ्ती मुहम्मद सय्यद कफील हाशमी ने भी सवाल के जवाब में कही।
दरअसल अमेरिका के मैनचेस्टर में रहने वाले मुहम्मद मसूद अहमद भी बेटी की शादी से पहले दरगाह से यही सवाल पूछ चुके हैं। मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी का कहना कि यूरोप में ज्यादातर मुसलमान बेटी, बहन की शादी तसवीज-ए-तलाक का हक लेकर ही करते हैं, क्योंकि वहां शादियां जल्द टूट जाती हैं।
आला हजरत दरगाह के फतवे का देवबंद उलेमाओं ने किया विरोध
हालांकि इस मसले पर देवबंद जमीयत-ए-उलमा के जिला महासचिव मुफ्ती अबू जफर का कहना है कि महिला के लिए तलाक का एक रास्ता खुला यानि काजी की अदालत ही है। उसके अलावा महिला खुद को तलाक नहीं दे सकती।
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