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मिल गया पैलेट गन का विकल्प। अब कोई कोर्ट दख़ल नहीं दे पाएगा।

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घाटी में प्रदर्शनकारियों को काबू में करने के लिए सेना पेलेट गन की जगह पावा शेल(मिर्ची के गोले) का इस्तेमाल कर सकती हैं। यह आंसू गैस से भी कम असरदार है और कुछ देर के लिए पंगु कर देता हैं।       


नई दिल्ली, 26 अगस्त :जम्मू-कश्मीर में पेलेट गन को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। गृह मंत्रालय के विशेषज्ञ ने कहा है कि पेलेट गन की जगह पर पावा शेल्स के इस्तेमाल पर विचार कर रही है। पावा शेल, मिर्ची के गोले हैं जो टारगेट को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। इन गोलों को टारगेट पर दागे जाने पर चंद मिनटों के लिए वह स्थिर हो जाता है और कुछ कर नहीं पाता हैं। 




घाटी में सेना प्रदर्शनकारियों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पेलेट गन का इस्तेमाल करती रही हैं। पेलेट गन छोटे-छोटे छर्रे होते हैं जो टारगेट के शरीर में जाकर चुभ जाते हैं। इससे सुरक्षाबलों का टारगेट तो पूरा हो जाता है लेकिन घायल लोग अपनी आँखों की रोशनी तक खो देते हैं। पेलेट गन से घायल हुए लोगों के घाव भरने के काफी समय लगता है और यह निशान रह जाता हैं। कई बार इससे हुए गहरे घावों को सर्जरी तक करानी पड़ती हैं। 2010 के बाद घाटी में पहली बार इस तरह के विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। घाटी में 2010 में हुए हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की जानें गई थी, इसी दौरान पेलेट गन का पहली बार इस्तेमाल हुआ था।
जम्मू-कश्मीर दौरे पर गए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दो-तीन दिनों के भीतर पेलेट गन का विकल्प खोजने की बात कही थी और विशेषज्ञ समिति पेलेट गन के विकल्प के तौर पर पावा शेल (मिर्ची के गोलों) को देख रही हैं। हालांकि अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं आया हैं। सूत्रों के अनुसार, गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि बीएसएफ, सीआरपीएफ, J&K पुलिस, आईआईटी दिल्ली और ऑर्डनंस फैक्ट्री बोर्ड के 7 सदस्यीय कमिटी भीड़ को काबू में करने के लिए विकल्प तलाश रही हैं। पैनल जल्द ही एक रिपोर्ट पेश करेगी। 
विशेषज्ञ कमिटी पावा शेल के पक्ष में रिपोर्ट पेश करने वाली हैं क्योंकि यह पेलेट गन के मुकाबले यह बहुत कम घातक हैं और उतना ज्यादा असरदार नहीं हैं। टारगेट पर इसे दागे जाने पर टारगेट को यह कुछ समय के लिए पंगु बना देती हैं। एक विकल्प बीएसएफ के TSU द्वारा बनाये गए स्टन ग्रेनेड को भी देखा जा रहा हैं। यह टारगेट को बेहोश करके उसे कुछ देर के लिए अंधा कर देता हैं।
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