जानिए हाथ में पत्थर लिए भारतीय सेना पर हमला करने वाली कश्मीरी महिलाओं का सच। कैसे अलगाववादी भड़का रहे हैं कश्मीरी लोगों को।
आज़ादी के बाद से भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर से बड़ा मुद्दा और कोई नहीं रहा। साथ ही संविधान की धारा-370, जिसके आधार पर कश्मीर को विशेषाधिकार प्राप्त हैं, को लेकर आए दिन बहस देखने को मिलती रहती है। कश्मीर में फ़ौज की तैनाती को लेकर भी विवाद रहा है। सैनिकों और कश्मीर के स्थानीय लोगों के बीच संघर्ष की ख़बरें भी देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। लेकिन इतने संवेदनशील विषय से भी कुछ लोग अपनी ख़ुराफ़ात से खेलने से बाज़ नहीं आते। झूठी ख़बरें, विडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर देश के आंतरिक माहौल को भड़काने में लगे रहते हैं। सोशल मीडिया के झूठ में आज ऐसी ही एक झूठी तस्वीर का पर्दाफ़ाश किया जाएगा। देखें,
वैली ऑनलाइन नाम के न्यूज़ पोर्टल पर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के हवाले से कश्मीर की आज़ादी के लिए लड़ने वालों को कश्मीरी स्वतंत्रता सेनानी कहा गया है।
इस ख़बर को पढ़ने के लिए आप यहाँ क्लिक कर सकते हैं। हालाँकि हमारा मक़सद केवल तस्वीर दिखाना है। ख़बर की पुष्टि हम नहीं करते। इसमें इस तस्वीर को representational picture (प्रतिनिधित्व करती इमेज) के रूप में लगाया गया है। ये पाठक को भ्रमित करने का एक तरीक़ा है। चलिए, अब हम आपको सच बताते हैं।
सच ये है कि जिन महिलाओं को ‘ग़द्दार’ कह रहे हैं या जिन्हें ‘हरामख़ोर’ बोल नक़ाब उतारने की चुनौती दे रहे हैं, उन महिलाओं ने विरोध में पत्थरबाज़ी ज़रूर की थी, लेकिन भारतीय सैनिकों पर नहीं इज़रायली सैनिकों पर। क्योंकि ये महिलाएँ फ़िलिस्तीन की रहने वाली हैं। भारत की नहीं।
आंदोलन इतना ज़बर्दस्त था कि इसे थर्ड इंटिफ़ाडा (यानी विद्रोह, बग़ावत) का नाम दिया गया था। साल 1983 से 1993 के बीच वेस्ट बैंक और गज़ा पट्टी पर इज़रायल के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनियों ने पहली बार आंदोलन छेड़ा था। दूसरा साल 2000 में शुरू हुआ। ये तीसरा था।
हमारा मानना है कि वैचारिक रूप से कमज़ोर लोग ही झूठ का सहारा लेते हैं।